GOPALGANJ: भगवान शिव को जल चढ़ाने के लिए कावड़ यात्रा का चलन युगों- युगों से चलता आ रहा है। महादेव को न किसी मिष्ठान की जरूरत है और ना ही किसी पूए – पकवान की जरूरत है। उनके लिए तो आपके द्वारा किया गया श्रद्धा से अर्पित एक लोटा जल ही पर्याप्त है। नाथों के नाथ भोलेनाथ आपकी श्रद्धा सुमन से ही रीझ जाते हैं। इससे खुश होकर वे आपको मन चाहा वरदान देते हैं।

विशेष कर सावन महीने का इंतजार शिवभक्तों को सालों भर रहता है। इस महीने में शिवालयों में भक्तों का तांता लगा रहता है। ग्रामीण इलाकों से लेकर शहरों तक सभी शिव मंदिरों में बम-बम भोले के जयकारे गूंजते सुनाई देते हैं। वहीं इन दिनों में कांवर यात्राएं भी निकाली जाती हैं। इसमें श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करने के बाद कांवर में गंगाजल लेकर जाते हैं। इसके बाद शिव मंदिर में महादेव का अभिषेक करते हैं।

पुराणों के अनुसार महर्षि जमदग्नि के पुत्र भगवान परशुराम ने त्रेता के अत्यंत दुराचारी राजा सहस्त्रबाहु का समूल विनाश करने के लिए अपने गुरु भगवान शिव की आराधना की। आराधना के लिए ही वे सर्वप्रथम गढ़मुक्तेश्वर धाम से गंगाजल लेकर निकले थे। वे सीधे उत्तर प्रदेश में बागपत के पास स्थित पुरा पहुंचकर महादेव का अभिषेक किया था। इसपर भगवान भोलेनाथ ने प्रसन्न होकर अपना फरसा उन्हें भेंट किया था। ऐसा कहा जाता है, कि इसी परंपरा को लोग आज भी निभाते हैं। श्रद्धालु कांवर में जल ले जाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं।
पंचदेवरी से रंजीत मिश्रा की रिपोर्ट:-