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घोर आश्चर्य से टुकुर टुकुर निहारती बुजुर्ग आँखें बोल नही रही इन्हें सुनना पड़ेगा जो कह रही है अइसन SP होला?

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“बूढ़ी आँखों को यकीं नही था सामने मोतिहारी का पुलिस कप्तान बैठा था जो अपना सा लग रहा था।              कई दशकों से इन निग़ाहों ने खाकी का खौफ देखा था पर ऐसा व्यक्तित्व व  संवेदनशील वर्दीवाला आशीष नही देखा था “

पटना Live डेस्क।वर्त्तमान दौर में जब लगभग 75-80%इंसान बिल्कुल भावना शून्यता और संवेदनहीनता के साथ जीवन को लगभग मशीनी अंदाज़ में जीने में मुतमइन है। इन हालातों में तब जब कभी आपकी नजरें अचानक थम जाती है और आप के कदम ठहर जाते है।फिर आप अविश्वसनिय पर सच्चे अनमोल पल के गवाह बन जाते है जो अब से आपको ताउम्र याद रह जाने वाला है। साथ ही इस बात घटना व पल से आपका यक़ीन और पुख़्ता होता है कि दुनिया मे इंसानियत अभी खत्म नही हुई है। आपकी उम्मीदें और विश्वास और अधिक मजबूत होतें है कि बदलाव के महानायक अब भी अपने सतत प्रयासों से मौन क्रांति कर रहे है।

                        पुलिस कप्तान मोतिहारी का जनता दरबार। फरियादी एक एक करके मिल रहे थे। उनकी समस्याएं सुनी जा रही थी। नियमानुसार कानून सम्मत कार्रवाई की जा रही थी।तमाम फरियादी, तमाम तरह की समस्याएं। सबकी अपनी-अपनी परेशानी। जिले की कमान संभालते ही युवा आईपीएस डॉ कुमार आशीष ने पुलिसिंग की जो नई इबारत लिखनी शुरू की है उसका प्रभाव कैसा है यह आप इन बातों से समझ सकते है कि समाज के आखरी पायदान पर खड़ा शख़्स महिला बुजुर्ग और बच्चे भी अपनी समस्याओं को लेकर बेहिचक थानों में पहुच रहा है।

                           वही,स्वयं कप्तान साहब लगातार थाना दिवस खातिर जिले के थानों में पहुच कर आम आदमी से मुख़ातिब हो रहे है साथ अपने दफ्तर में भी जनता दरबार का नियमित तौर पर आयोजन कर रहे है। इन प्रयासों का फलाफल यह है कि पुलिस पब्लिक सम्वाद और आपसी विश्वास का दायरा लगातार बढ़ रहा है।सूबे में धूप की तपिश लगातार बढ़ रही है। गर्म लू के थपेड़ों व चिलचिलाती धूप कहर बरपाने को आतुर है। वही पुलिस पब्लिक सार्थक सम्वाद का ही फलाफल है कि गर्मी की परवाह किए बिना एक बुजुर्ग महिला लाठी टेकते टेकते पसीने से लतपथ अपने साथ एक बच्ची को लेकर बेखटक मोतिहारी पुलिस कप्तान के जनता दरबार मे पहुची।

                          एसपी साहब स्वयं सबकी बातें और समस्याएं शिकायते परेशानियों को बारी बारी सुन नियमानुसार आदेश निर्देश लिख रहे थे,आदेश जारी कर रहे थे। थोड़े इंतज़ार के बाद अपनी बारी आने पर लगभग अस्सी वर्षीय बुजुर्ग महिला लाठी टेकते हुए बच्ची के साथ पुलिस अधीक्षक के दफ्तर में प्रवेश कर गई। चेंबर में पहुची तो पहले से तैनात एक महिला सिपाही ने उसे बैठने का इशारा करते हुए उसे व बच्ची को कुर्सी पर बैठा दिया और फिर उसका आवेदन अपने हाथ में लेकर पास में हीं खड़ी हो गई।

Bujurg

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               इसी बीच लगातार फरियाद सुनते हुए कप्तान साहब की नजर अचानक बुजुर्ग महिला पर पड़ती है।।नज़र पड़ते ही बुजुर्ग महिला साथ में बच्ची को देखकर युवा आईपीएस कुमार आशीष की आँखें कुछ पल को ठहर जाती है फिर एकाएक उनका हाथ अपने आप अपने टेबल के दराज की ओर बढ़ जाता है।दराज से बिस्किट के 2 पैकेट निकालकर पास खड़ी महिला आरक्षी को इशारे से बुलाकर देते हुए इशारा कर कहते हैं बिस्किट खिलाइए। फिर अपने टेबल पर रखे शीलबन्द पानी की बोतल भिजवा देते है। फिर समस्यओं को सुनने और कानून सम्मत कार्रवाई में मुतमइन हो जाते है। महज कुछ पलों में यह वाकया शुरू और खत्म हो जाता है। जैसे कुछ हुआ ही नही। लेकिन क्या यह महज एक पल का वाकया था? नही बल्कि नही यह लगभग 7 दशक से ज्यादा वक्त से पुलिस के प्रति अनजाने खौफ और डर का खात्मा था। यह पल अविस्मरणीय और अद्भुत था।

संवेदनशील युवा IPS कुमार आशीष 

IPS Kumar Ashish

             मैले कुचले साड़ी बदन पर लपेटे लाठी टेकते अपने साथ एक बच्ची लेकर आई बुजुर्ग महिला तो पुलिस के सबसे बड़े साहब के इस आत्मीयता से सन्न रह गई थी। बस टुकुर टुकुर काम मे तल्लीन एसपी साहब को एकटक निहारती जा रही थी। दरअसल ये टूटी उम्मीदों और जीवनरूपी अग्निपथ पर लागातर संघर्ष के थकान और पीड़ा से पथरीली बोझिल आँखों का उन्मत्त अविश्वास था। जो थोड़ा सकुचाया भर्राया और हद से ज्यादा भावुकता में एकटक निहार रहा था। इस अविस्मरणीय पल यानी लगभग 7 दशकों से मन मे पुलिसवर्दी और पुलिसवालों के प्रति अनजाने डर,खौफ और अविश्वास के डरवाने क़िले के कुछ पलों धूल धूसरित होने के गवाह बने मोतिहारी के स्थानिए वरीय सहाफी व कलमकार नरेंद्र झा साहब।

                 जिन्होंने इस वाकये का जिक्र करते हुए लिखा है कि ” मैं कवि नहीं हूं इसलिए उसकी गहरी नजरों की भाषा नहीं पढ़ पाया लेकिन अबतक के मेरी पत्रकारिता की दृष्टि एसपी की मानवीय दृष्टिकोण या उनकी संवेदनशीलता की ओर चली गई। बुजुर्ग महिला को क्या परेशानी थी,उसका समाधान क्या होगा यह मैं नहीं जानता लेकिन पुलिस कप्तान डाक्टर आशीष का यह मानवीय व्यवहार दिल को छू गया।

              वैसे भी पुलिस कप्तान की चर्चा बेहतर पुलिसिंग को लेकर हो रही है लेकिन वे इतने मानवीय हैं यह पहली बार दृष्टि गोचर हुआ है। यह भी साबित हो गया है कि पुलिस जितनी अपराधियों के खिलाफ सख्त होती है उतनी ही आम लोगों के लिए उदार भी।उक्त बुजुर्ग महिला की क्या समस्या है और उसका निदान क्या होगा, नहीं बता सकता लेकिन उसके दिल से जो दुआएं निकलीं होगी और उसे जो विश्वास जगा,मैं समझता हूं उसके दर्द का सबसे बड़ा निदान हो गया। 

                 बचपन से हम सभी सुनते आ रहे है”परिवार का नेतृत्वकर्ता जिन राहो पर चलता है बाकी सदस्य भी उसके नक्शे कदमो पर चलते है या चलने की कोशिश करते है। अतः बापू की कर्मभूमि को मिले इस अद्वितीय आशीष के जरिए जो बदलाव के बीज बोए गए है वह अब अंकुरित होने लगे है विश्वास और संवाद रूपी फल खाकी के लिए और प्रति जो एक “आमसोच या धारणा बन गई है” को पुनः प्रतिष्ठित करेंगे यह परिलक्षित होता दिखाई दे रहा है।

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